रविवार, 24 जुलाई 2011

अनचाही दरार-2........."खूंटा "

प्रेम की बनावट में 
समर्पण  की लकड़ी  के,
दो खूंटे बनाये थे हमने 
एक मैंने तेरे,
और एक तुने मेरे 
सीने में गाड़ा था ...
तेर खूंटा उखड़ न सका,
मेरा खूंटा उखड़ गया ......आधा
जड़ को लिए तू
और तेरे खूंटे को लिए मैं,
अगल बगल की विमुखी  सड़को पर...
एक दुसरे को कोसते 
 खुद की गलतियाँ दूंदते,
खूंटे में रही कमी का एहसास करते 
चले जा रहे है......
चौराहे की तलाश में,
की ताकि सड़क बदल ले 
और हो जाये फिर से हमराही,
लेकिन नहीं आ रहे है ...
चौराहे .... 
 

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